बौद्ध धर्म को हम मानवीय धर्म कह सकते हैं, क्योंकि बौद्ध धर्म ईश्वर को नहीं, मनुष्य को महत्व देता है। भगवान बुद्ध
ने अहिंसा की शिक्षा के साथ ही अपने धर्म के अंग के तौर पर सामाजिक, बौद्धिक, आर्थिक, राजनैतिक स्वतंत्रता एवं समानता की शिक्षा दी है। उनका मुख्य ध्येय
इंसान को इसी धरती पर इसी जीवन में विमुक्ति दिलाना था, न कि मृत्यु के बाद स्वर्ग प्राप्ति
का काल्पनिक वादा करना।
बुद्ध ने साफ कहा
था कि उनका उपदेश स्वयं उनके विचार पर आधारित है, उसे दूसरे तब स्वीकार करें, जब वे उसे अपने विचार और अनुभव से सही पाएं। जिस प्रकार एक सुनार
सोने की परीक्षा करता है, उसी प्रकार मेरे उपदेशों की परीक्षा करनी चाहिए। दूसरे किसी भी
धर्म संस्थापक ने कभी यह बात नहीं की।